पद्मावती छंद
10/8/14
जो कोशिश करता, चलता रहता, बढ़ता जाता हिम गिरी पर।
परवाह न करता, आगे क्या है, क्रमशः चढ़ता फूंक फूंक कर।
है बाएं दाएं, गहरी खाई, सावधान नियमित दिखता।
वह गिर जाने पर, फिर उठता है, इतिहास अमर नित लिखता।
उद्देश्य अटल हो, दूर दृष्टि हो, नेक इरादा मन में हो।
भूतल से उठने, की इच्छा हो, ऊर्जा मनबल दिल में हो।
गिरने से मानव, जो नहिं डरता, वही सफल हो जाता है।
है जिसके भीतर, मंजिल मुखड़ा, वही लक्ष्य को पाता है।
रचनाकार: डॉ. रामबली मिश्र
९८३८४५३८०१
Muskan khan
02-Nov-2022 05:02 PM
Well done
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Sachin dev
02-Nov-2022 04:32 PM
Nice 👌
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Raziya bano
02-Nov-2022 10:30 AM
Bahut khub
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